Thursday 30 July 2015

A-083 उसकी आँखों में 26-4-15--3.07 AM



A-083 उसकी आँखों में 26-4-15--3.07 AM
उसकी आँखों में ग़ज़ब का सैलाब है
किसको ढूँढ़ती हैं, और क्यों बेताब हैं 

बेचैनी का सबब, और दिल बेकरार है
ख़ामोश निगाहों को केवल इंतज़ार है

सवाल भरी यह आँखें कुछ ढूँढती हैं
क्या मिलेगा जवाब ये बातें गूँजती हैं  

कैसा हमसफ़र होगा मेरी ज़िन्दगी का
क्या असर आएगा, अब मेरी बंदगी का

ज़िन्दगी में सपने हमने भी संजोए थे
सपनों संग मनके हमने भी पिरोये थे

हम ने जीवन का हर पल सँवारा था
सारा मलाल क्या केवल हमारा था? 

ज़िन्दगी से कैसे अब मैं करूँ सवाल
कैसा भरोसा करूँ, अपने करें मलाल 

अभी-अभी आया झूठा मुस्कुराता था
बातें कुछ और थी और ही बताता था

अपनापन जता जवाबदेही दिखाता था 
झूठ बोल कर ख़ुदग़र्ज़ियाँ छिपाता था 

अस्मंजस ने खड़े किये ढेरों सवाल
किसी को दिखे तो सही, मेरा हाल 

आँसुओं का हुजूम जब उतर आता है
रात-रात भर बैठना और भी सताता है

उम्र का पड़ाव भी तब सलीब होता है
प्यार ही है जो उसका तरतीब होता है 

गिले शिकवे धुलें, अपनों के प्यार से
वही निकलें जब दिल की किताब से 

पुलकित छाँव तले कैसे कोई रोता है
कौन, कब, कितना उदास क्यों होता है

निगाहें तड़पती हैं, देखने को ये जज़्ब 
नींद उड़ जाती और हाल बुरा होता है

किस्मत की एक अनकही कहानी है
बात छोटी सी है, पर बहुत पुरानी है

कोई किसी का नहीं इस दुनिया में
बात सच्ची पर समझ नहीं आनी है

कोई मेरी निगाहों संग देखे तो ज़रा
कौन कितनी बार जीया कितना मरा 

किसको कितनी बात समझ आई है
ये कहानी है, किस्सा है, या रुसवाई है

मुस्कान ज़िंदगी की आँखों में बसी थी
खुश थी निगाहें, पर कब ख़ुदक़शी की

नहीं रहना मुझे अब इस पत्थर के संग
वापिस चाहिए मुझे, ज़िन्दगी, मेरी उमंग

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”


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