Thursday 30 July 2015

A-007 अच्छा लगता है 24.4.15-- POEM

तेरा करीब आना और फिर मुस्कराते जाना
नज़रों को करीब लाना और मुझको बुलाना
थोड़ा सा प्यार करना फिर और भी जताना
खामोश निगाहों से देखना और उनको चुराना
अच्छा लगता है…..!

जुल्फों को सवाँरना और मुझको पुकारना
जुल्फें उड़ती जाना और उनको सम्हालना
माँग का टेढ़ा होना और लटों को लटकाना
चेहरे को झटक कर फिर लटों को झटकाना
अच्छा लगता है…..!

कभी खामोश हो जाना कभी खिलखिलाना
कभी मुझको बुलाना और कभी दूर भगाना
कभी मौन हो जाना कभी खुद करीब आना 
दूर खड़े होकर फिर धीरे धीरे से मुस्कराना
अच्छा लगता है…..!

आँखें मूँद लेना फिर कहीं और चले जाना
वापस जब आना तो फिर हौले से मुस्काना 
खो गयी थी कहीं कहकर खुद ही फुसलाना
खो जाने की बातें करना फिर खुद ही मनाना 
अच्छा लगता है…..!

होठों का गुलाबी होना, थोड़ा सा शराबी होना
नयन कटीले होना और भृकुटी मेहराबी होना
खुल के इज़हार करना दिल का बेक़रार होना
प्यारा सा एक चुम्बन और फिर बेशुमार होना
अच्छा लगता है…..!

माथे की बिंदिया और गोल आकार होना
त्रिशूल के शूल का पूरा पूरा उभार होना
भृकुटी तनी रहे  तब कहीं सिंगार होना
ऐसे सिंगार से ही रूप का निखार होना
अच्छा लगता है…..!



नयन और नक्श जब दोनों मिलते हैं
एक ही आधार पर जब दोनों खिलते हैं
खुशनुमा मौसम का तब सिंगार होता है
आँखों का तीर जब दिल  के पार होता है
अच्छा लगता है…..!

जब तेरे होठों की लाली मुझको पुकारती है
जब फिजा खुद सम्भल खुद को सवाँरती है
जब तेरे नयनों की चमक मुझको निहारती हैं
जब मेरे सपनों को अपने दिल में उतारती है
अच्छा लगता है…..!

सुन्दर गालों पर जब गुल निखार होता है
चाँद से चहरे पर जब रूप सिंगार होता है
फिजायें महकती है दिले तिमार होता है
और निगाहों में प्यार भी बेशुमार होता है
अच्छा लगता है…..!

जब तूँ दबे पावों धीरे धीरे आती है
थोड़ा मुस्कराती है थोड़ा शर्माती है
बात कुछ भी नहीं फिर भी बताती है
चुपके से मेरी बाँहों में चली आती है
अच्छा लगता है…..!

जब तूँ छटक कर दूर भाग जाती है
पीछे भागता हूँ और मुझे छकाती है
खुद आगे आगे और मुझे दौड़ाती है
पकड़ भी लिया फिर भी छूट जाती है
अच्छा लगता है…..!

पकड़ में जब जाये थोड़ा शर्माती है
बाँहों के घेरे में पड़ी थोड़ा कसमसाती है
पहले डरी सी लगती है फिर मुझे डराती है
फिर अपने आपको छुड़ाकर भाग जाती है
अच्छा लगता है…..!




मेरे करीब आकर फिर मुझसे ही अकड़ना
मुझे गुदगुदी करना और अकड़ के खड़ना
अचानक चुम्बन करना और भाग जाना
आखँ मिचौली करना फिर मुझको सताना
अच्छा लगता है.....?

उभरती हुई जवानी में सोलह सिंगार करना
गज़ब की नज़ाकत और नखरे हज़ार करना
कमर में कमरबन्द, कमर लचका के चलना
चाबियों का गुच्छा और गुच्छे से वार करना
अच्छा लगता है.…?

तेरा नाराज़ होना और उसको बरकरार रखना
नासमझी की बातें करना फिर भी प्यार करना
लाल पीला होना और गुस्से का इज़हार करना
जब मैं रूठ जाऊं तो मनाना और प्यार करना
अच्छा लगता है.…?

जिद पकड़ कर बैठ जाना उल्टा व्यवहार करना
मुहँ घुमा कर बातें करना और विशवास करना
उलटी सीधी बातें करना और फिर उदास होना
रात भी खराब करना और दिन भी बर्बाद करना
अच्छा लगता है.....?

अक्ल नाम की कोई चीज़ का एहसास भी नहीं
रूठकर बैठ जाना जैसे ये बात कुछ खास नहीं
समझदार बहुत है पर अक्ल से मुलाकात नहीं
सुन्दर भी बहुत है पर सुंदरता का एहसास नहीं
अच्छा लगता है.....?

बात बात पे नाराज़ होना फिर खुद को सताना
गुमशुदा होकर रहना और फिर कुछ बताना
अगर मैं कुछ बात बढ़ाऊँ, मुझे ही काट खाना
असमंजस में रहना और खुद को मार गिराना
अच्छा लगता है.…?




हर सवाल के दरमियाँ सवाल खड़े करते रहना
इतनी सारी परेशानियां और उनमें उलझे रहना
चुप चाप देखते जाना और कुछ भी नहीं कहना
आखों में आंसू होना और उनसे उलझते रहना
अच्छा लगता है.....?

नाक का चढ़ा होना और मक्खी भी बैठ पाना
नयन नक्श तीखे होना और नथुनों को फुलाना
लाल पीला होते रहना और गुस्सा भी दिखाना
कभी नज़रें उठाना कभी चुराना कभी मुस्कराना
अच्छा लगता है.....?




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