Thursday 30 July 2015

A-184 पागल 28-6-15--5.34 AM

तुम प्यार में पागल हो कि मैं तेरा दीवाना हूँ 
तुम मेरी मल्लिका हो कि मैं तेरा परवाना हूँ 

नहीं इल्म मुझे कि तेरे वज़ूद में ऐसा क्या है 
जो स्वयं मुख्तयार होकर भी मुझसे जुदा है 

मौजूद होने से पहले हम थोड़ा सा ध्यान दें 
एक दूसरे को भी हम इत्मिनान से जान लें 

एक-दूसरे की राह का एहसास हो  परस्पर 
एक दूसरे का मानसिक विकास हो निरंतर 

याद करो तुम जब हम पहली बार मिले थे
एक दूसरे से अन्जान तब भी फूल खिले थे

तेरे चेहरे की दमक और हया का वो पहरा
दिल पे उसका असर भी था कितना गहरा 

तयशुदा मुकम्मल था कि पागल हो रहे थे 
एक स्वप्निल संस्कार सपनों में पिरो रहे थे 

तुमको देखकर हम भी नशीले से हो रहे थे 
मन विचलित और हम डर को संजो रहे थे 

इक बार तो लगा हम दोनों घबराने लगे थे 
अपनी नज़रें हम खुद से ही छिपाने लगे थे 

सवालों के ज़ख्म जब सिर हिलाने लगे थे 
हम अपने विचारों पर अंकुश लगने लगे थे 

एक दूसरे की दिक्क्तों को हम पहचान लें
प्यार से सुन पुकारने को प्यारा सा नाम दें 

चलो छोड़ो ये ज़िद्द थोड़ा सब्र से काम लें 
आगे बढ़कर एक दूसरे का दामन थाम लें


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”


A-014a डर लगता है तेरे पास आने में 24.4.15--4.15AM

A-183 डर लगता है तेरे पास आने में 24.4.15--4.15AM

डर लगता है तेरे पास आने में
आने हँसने और मुस्कुराने में
तेरी नज़र से नज़रें मिलाने में
टूटे न सब्र तेरे करीब आने में

तेरा अच्छा होना मुझे डराता है
तेरा भरोसा मुझे काट खाता है
न देखो इस कदर मेरे ए सनम
तेरा ऐसा होना आग लगाता है

तुमने सिर्फ चुटकी ही तो काटी थी
सिहरन सारे तन बदन में जागी थी
अंग अंग से छूटने लगा पसीना था
मर ही गई मुश्किल हुआ जीना था

प्यार से कलाई ही तो पकड़ी थी
अंदाज़ा भी है कितना तड़फी थी
जान निकल गयी थी उसे छुड़ाने में
उलझ गयी थी खुद को समझाने में

तूने प्यार से करीब ही तो बुलाया था
सारे तन बदन ने मुझको हिलाया था
दिल मेरा उछले भी कभी घबराया था
कुछ कहना था मगर कह न पाया था

तेरे हाँथो के निवाले कुछ कम नहीं
मेरे होठों को भी छुएं कुछ गम नहीं
तेरी अदा मुझे बार बार खिलाने की
काफी थी मेरे लिए मुझे रिझाने की

तुमने मुझे छुआ मैं मर ही गयी थी
बाहों में आकर तो डर ही गयी थी
तड़प थी खुद को तुझसे छुड़ाने की
या तड़प थी बाँहों में कसमसाने की

बाहों के दरमियाँ गिरकर भी देखा है
वफ़ा पे शक नहीं तेरी भी एक रेखा है
कैसे कहूँ मैं अब कि तुम मेरे नहीं हो
तुम ही तो हो यही मेरी जीवन रेखा है

अभी मेरा सोलह श्रृंगार भी बाकी है
प्रियसी होने का इंतज़ार भी बाकी है
मेरे सपने मेरे ख्वाब भी गौर तलब हैं
हकीकत की दुनिया इज़हार बाकी है

डर लगता है तेरे पास आने में
आने हँसने और मुस्कुराने में……..!
आने हँसने और मुस्कुराने में……..!

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

A-182 चले भी आओ अब 15.6.15 5:37 AM

 A- 182 चले भी आओ अब  15.6.15  5:37 AM

चले भी आओ अब मेरे आग़ोश में
जिंदगी जानो रहकर थोड़े होश में
जिंदगी जियो रहकर थोड़े जोश में
वर्ना रह जाओगे तुम पशम पोश में

दिल करता है सुबह उठकर मुकर जाने को
सिकुड़ता जाता है जिस्म लिपट जाने को
इससे क्या रंगी समां होगा कुछ पाने को
जिंदगी जीनी है या दिखाना है ज़माने को

इतने कपड़ों में कुछ भी नहीं दिखाने को
सिहरन सी उठती है दाँत किटकिटाने को
हाँथ करते है शुकराना अपने दस्ताने को
चेहरा भी दिखता नहीं अब मुस्कराने को

सफ़ेद चादर ओढ़े हुए है ये आसमां
नहीं दिखता है मुझे कोई भी निशां
नज़र मेरी दूर जहाँ तक भी जाती है
फिर लौटकट वापस सिमट जाती है

कैसे ढूँढूँ मैं अब अपने प्यार को
कैसे समझाऊं मैं इस बयार को
चश्मा भी धुंदला सा हो गया है
मेरा यार यहीँ कहीं खो गया है

दबे पावों दूब से अब निकलना है
मोती बिखर न जाये सम्हलना है
एक एक पत्ते पे बिखरे ये मोती
इनके ऊपर ही तो अब टहलना है

कलियाँ भी कुछ दुबक सी गयी हैं
मोतियों संग कुछ सुबक सी रही हैं
नहीं कोई चादर है ओढ़ने के लिए
कहीं चंगी और कहीं लुढक गयी हैं

पंछी भी थोड़े गुमसुम से बैठे हैं
किसी से कुछ भी नहीं कहते हैं
अपना  दर्द वो खुद ही सहते हैं
न जाने किसके लिए वो बैठे हैं

हर ढलान फिसलन सी बन रही है
फिजा भी सहारे लेकर चल रही है
आवाज भी कुछ दुबक सी गयी है
पौ अभी आखिरी सांसें गिन रही है

अंधेरा थोड़ा कम हुआ जाता है
रवि के आने की खबर बताता है
लाल गोला जैसे ही मुस्कराता है
हर चेहरा खिलता चला जाता है

किरण उम्मीद बनकर आयी है
सुनहरे रंग बिखेरती वो छाई है
चिड़िओं में एक उमंग जागी है
वो उड़ी वो उड़ी और वो भागी है

धूप खुलकर निखरने लगी है
चहलकदमी अब बढ़ने लगी है
फिजा भी अब महकने लगी है
चिड़ियाँ भी अब चहकने लगी हैं

ठंडी हवा के झोके आने लगे हैं
हर बदन को छूकर जाने लगे हैं
हवा के हिलोरे बल खाने लगे हैं
खूबसूरत चेहरे मुस्कराने लगे हैं

तन बदन की खुशबू भी यहाँ आई है
फ़िज़ा भी खुलकर यहाँ मुस्कराई  है
ठंडी ठंडी हवा की ये ठंडी सी बौछार
ऐसा स्पर्श भी मिलता है कभी कभार

हर कली फूल बनकर महक रही है
हर पंछी की आवाज़ चहक रही है
दिल की आवाज़ भी सिसक रही है
फ़िज़ा बनकर इज़हार कसक रही है

कहाँ मिलती हैं इतनी सुन्दर फिजायें
कहाँ दिखती हैं इतनी सुन्दर अप्सराएं
क्यूं दिल करता है कि बार बार आएं
क्यूं दिल करता है की अब मुस्कराएँ
कहाँ मिलता है यूँ जमीं से आसमाँ 
कहाँ मिलता है ऐसा सुन्दर कारवाँ
कहाँ मिलते हैं यह हवाओं के बुल्ले
कहाँ मिलते हैं यह दतवन ये कुल्ले

कहाँ मिलता है इतना रंगी ये समाँ
मिलती है आज़ादी घूमे सारा जहाँ
कली फूल बनकर खिलती है वहाँ
कदरदान की निगाहें दास्ताँ हों वहाँ

कहाँ मिलता हैं पंछियों का खज़ाना
हवा में लहराना बल खा खा जाना
हवा में उड़ान भरना और तिरते जाना
एक दम बिछुड़ना एक जुट हो जाना

ऊँची उड़ान भर कर इतराने लगे हैं
मटक मटक कर शोर मचाने लगे हैं
औरों को साथ लेकर गाने लगे हैं
आसमां की रौनक भी बढाने लगे हैं

टहनिओं पर बैठना निगाहें इतराना
एक ने उड़ना और सब ने उड़ जाना
घूम घूम कर फिर वापस आते जाना
शोर मचाकर फिर सबको ये बताना 

तुम पहले भी मेरे आगोश में आते थे
तुमको पता है तुम कितना घबराते थे
कभी आते थे कभी रुक रुक जाते थे
फिर यह बात तुम खुद ही तो बताते थे

चले भी आओ अब मेरे आग़ोश में
जिंदगी जानो रहकर थोड़े होश में


A-181 कुछ भी पुराना नहीं 31.07.2020--8.35 PM

यह कैसी ज़िन्दगी है 
यह किसकी बंदगी है 
खुद को जाना नहीं 
किसी को पहचाना नहीं 
क्योंकि……कुछ भी पुराना नहीं 

सोमरस कहाँ से लाऊँ 
कौन सी कहानी सुनाऊँ 
किसकी मैं बातें करूँ 
किसके मैं संग जाऊँ 
क्योंकि……कुछ भी पुराना नहीं 

हँसू भी तो किस की बात पे 
रोना आये तो किस आपात पे 
मुस्कुराऊँ तो किस आभास में  
शुक्राना करूँ किस औकात से 
क्योंकि……कुछ भी पुराना नहीं 

कुछ तो स्फुरित होता 
कुछ तो अंकुरित होता 
कहीं तो मुस्कान होती 
कुछ तो पहचान होती 
किसी को भी जाना नहीं 
क्योंकि……कुछ भी पुराना नहीं 

किस पर मैं ऐतबार करूँ 
गिले शिकवे और वार करूँ
किस की शिकायत करूँ 
किस की हिमायत करूँ 
किसको मैं प्यार करूँ 
क्या है जो इजहार करूँ 
क्योंकि……कुछ भी पुराना नहीं 

अमृत पाल सिंह 'गोगिया'

A-188 मेरे पास तेरी क्यूँ का कोई जवाब नहीं है 18-6-15 8.30 AM


A-188 मेरे पास तेरी क्यूँ का कोई जवाब नहीं है  18-6-15 8.30 AM


मेरे पास तेरी क्यूँ का कोई जवाब नहीं है
जिंदगी है हकीकत है कोई ख्वाब नहीं है
तेरा वायदा और दर्द बखूबी समझता हूँ
तेरी हर बात की मैं बहुत क़द्र करता हूँ

मेरी ही कमियाँ अब मैंने ही सुधारनी हैं
कोई भी ऐसी बात मैंने नहीं बघारनी है
जो मैं नहीं हूँ वही सच बोलना जरुर है
मैं अच्छा इंसान नहीं हूँ, ये मेरा गरूर है

मैं लौट के आयूँगा जब सुधर जायूँगा
ये गुस्सा ये प्यार सबसे मुकर जायूँगा
जब खरा उतरूंगा तेरी ही कसौटी पर
फिर ये बात मैं हर जीवन में दोहराऊंगा

मुझे जरुरत है अपने आप से लड़ने की
अपनी गलतियों को खुद ही पकड़ने की
मुझे बल चाहिए स्वयं ही कुछ करने की
जिंदगी के हर पहलू पर विचार करने की

तुम बीच में आये तो मैं फिसल जायूँगा
फिर ये बात मैं कैसे तुमको समझाऊंगा
कुछ मेरी भी जिंदगी की कमजोरियां है
ये बात फिर मैं तुमको नहीं बता पायूँगा

स्वीकार नहीं कर पाओगे कमिओं के संग
तरीका है जीवन का और यही है तेरा ढंग
डरता हूँ गायब हो जाये तेरी अपनी उमंग
डरता भी रहूँगा मैं फिर भी रहूँगा तेरे ही संग

पता नहीं जीने के अपने अपने तरीके है
कोई गुमशुदा रहता है कई गम सरीके हैं
कोई रो रो कर अपना जीवन यूँ गँवाता है
कोई हँसता गाता मुस्कराता चला जाता है

मुझे कोई गिला नहीं अब तेरे इस होने में
दर्द होता है मुझे अब तेरे आसूं पिरोने में
माफ़ कर देना मुझे मैं ही तन्हा हो जाऊंगा 
यही एक तरीका है नहीं तो मैं पछ्तायूंगा

मेरे पास तेरी क्यूँ का कोई जवाब नहीं है

जिंदगी है हकीकत है कोई ख्वाब नहीं है ……