Thursday 28 December 2017

A-242 उसकी आँखों में 11-7-15 -4.20 AM









उसकी आँखों में 
एक स्वछंद मुस्कान और वही पहचान है 
आँखों में नृत्य है मगर लगती अनजान है 

सीखती हुई सीखाती साथ में सम्मान है 
मुस्कान सहित उड़ान है जीना आसान है 

बदलते हुए समय के बहुत से सवाल हैं 
उनमें विरोधाभास है अल्पमत बवाल है

पर जो कहना चाहती है कह भी लेती है 
ग़र कुछ न कह सके तो सह भी लेती है 
कभी शैतानी तो कभी प्यार का अंबार है 
सीधी सादी बातों से निकलता इज़हार है 

ज़िंदगी एक ख्वाब है खूबसूरत नज़ारा है 
वही दिशा का सूचक है उसका सहारा है 

बहुत सारे स्वप्न है जो रंगों के गुलाम हैं 
थोड़ी सी आहट संग हो जाते गुमनाम हैं 

वो एक नैया है और वो खुद ही खेवैया है 
बातों को मनवा लेना ही उसका रवैया है 

चहल-कदमी करती मुस्कराती जाती है 
पूछने पर भी कुछ बातें तो टाल जाती है 

एक नृत्यांग्ना है एक बड़ी सी संभावना है 
बेटी के रूप में मिली प्यारी सी भावना है 

अमृत पाल सिंह 'गोगिया'

A-342 मेरे आग़ोश में 1.1.18--5.45 AM

A-342 मेरे आग़ोश में 

मेरे आग़ोश में यूँ तन्हा न हुआ करो 
नज़रें मिला मुझसे तुम न छुआ करो 
तेरा एक एक कदम कर आगे बढ़ना 
और करीब और करीब न हुआ करो 

परेशानी का सबब है तेरा चले जाना 
तुमने तो ढूंढ लेना है बस कोई बहाना 
किसके सहारे कटेगी अब बाकी रैना 
थोड़ा सोचो सोच कर मुझे समझाना 

ज़िंदगी में और भी हैं इतनी रुस्वाइयाँ 
क्यों कर सहनी पड़े और ये तन्हाईयाँ 
ग़मों का नहीं हुआ है हिसाब मुकम्मल 
नहीं कर सकते हम अब तेरी बुराईआं 

आकर ठहर जा तुम एक सहरा बनो 
अपने बहानों के बीच तुम पहरा बनो 
तेरा जाने में तेरा आना मुकम्मल हो 
मेरे बाहुपाश में तुम मेरा चेहरा बनो  

मेरे आग़ोश में यूँ तन्हा न हुआ करो 
नज़रें मिला मुझसे तुम न छुआ करो 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”


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A-341 तेरा ऐसे मुस्कुराना 6.1.18--4.13 AM


A-341 तेरा ऐसे मुस्कुराना 6.1.18--4.13 AM

तेरा ऐसे मुस्कुराना मुझको गले लगाना
लगता है तुमको भी आ गया है निभाना

तुमको पड़े कभी अगर रिश्ते में पछताना 
थोड़ा दर्द मुझे दे देना खुद को न रुलाना 

तुम्ही हो मेरे हमदम तेरे कहने में रह लेंगे 
तेरे दिया हुआ दर्द हम ख़ुशी से सह लेंगे 

तेरी ख़ुशियों की ख़ातिर बुने हैं जो सपने 
सिर्फ़ तुम्ही तो हो जो लगते हो मेरे अपने 

हमने बना लिया एक छोटा सा आशियाँ 
तेरे सपनों के संग रहेगा तेरा ये क़दरदाँ  

तेरे मेरे सपने जब एक रंग में सजे होंगे 
ज़िंदगी जीने के तरीके दोगुने मज़े होंगे 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia 


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A-339 माँ तुम आओ न 21.12.17--6.34 AM


A-338 माँ तुम आओ न 21.12.17--6.34 AM   
माँ तुम आओ न 
कान पकड़ समझायो न 
मेरी तो कोई सुनता नहीं 
तुम ही इन्हें बताओ न 

क्या हलाल क्या झटका 
टूटा तो फिर वही मटका 
चाहे ज़िद में आकर रूठा 
चाहे गिर कर खुद ही टूटा 

कैसे यह धर्म हैं 
कैसी हैं ये मजबूरियाँ 
दिशा ज्ञान के चक्कर में 
अधर में अटकें हैं सब 
जो कहें सब अधूरियाँ 
धर्म ज्ञान के चक्कर में 
सब बँधे हुए हैं 
सबको पड़ी भसूरियाँ 

अपने भी अपने कहाँ रहे अब 
अपनों के भी जोश खो गए 
अपनों की रंगत को देख 
सपने भी मदहोश हो गए 

ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा जान लिया 
उनको मनाया ख़ुद को मान दिया 
पहचान लिया मैंने अपने अहम् को 
अपने अहम् को ख़ुद विश्राम दिया 

मेरा मन नहीं लगता अब 
अपने पास बुलाओ न 

माँ तुम आओ न 
कान पकड़ समझायो न 
मेरी तो कोई सुनता नहीं 
तुम ही इन्हें बताओ न 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

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A-338 चले भी आओ 17.12.17—6.58 AM

A-338 चले भी आओ 17.12.17—6.58 AM
चले भी आओ अब किसका इंतज़ार करते हो 
वहाँ कोई नहीं है जिसका तुम विचार करते हो 

न कोई जिक्र है न कोई है तुमको मनाने वाला 
बेशक़ इंतज़ार करो कोई नहीं है रिझाने वाला 

ग़मज़दा होने से नहीं मिलता कोई भी तबस्सुम 
जो तुम्हें अपनी पहचान दे और मुस्कराने वाला 

तेरे गम में शरीक़ होकर तुमको समझाने वाला 
तेरा हमसफ़र भी बने और तेरा गम खाने वाला 

किसी को फुर्सत नहीं जो ग़मज़दा हो तेरे लिए 
न अपने आँसुओं को बहा तेरे अपने हैं तेरे लिए

बहुत मशरूफ हैं क़ाबिल तेरी मुद्दों के मद्देनज़र 
मुल्जिमों को फुर्सत नहीं फ़ब्ती कसने के लिए

चले भी आओ अब किसका इंतज़ार करते हो 

वहाँ कोई नहीं है जिसका तुम विचार करते हो 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia "Pali"


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